करीब 200 साल पहले 27 सितम्बर 1825 लंदन के डालिंगटन से 450 पैसेंजर्स को लेकर इस ट्रेन ने 24 किमी / घंटे की मैक्सिमम स्पीड से स्टॉकटन तक का सफर तय किया। ये दुनिया की पहली रेलगाड़ी थी और इसी के साथ रेल ट्रांसपोर्ट की शुरुआत हुई।
भारत में रेल की शुरुआत की कहानी अमेरिका में कपास की फसल खराब होने से जुड़ी हुई है। 1840 के दशक में कपास की फसल को काफी नुकसान पहुंचा था। कच्चे माल की कमी से जूझ रहे ब्रिटेन के कपड़ा कारोबारी कपास के नए अड्डे खोजने लगे।उन्हें भारत सबसे उपयुक्त स्थान मिला, लेकिन इतनी मात्रा में कपास की ढुलाई कैसे हो। 1843 में लॉर्ड डलहौजी ने भारत में रेल चलाने की संभावनाएं तलाशीं और 1845 में कलकत्ता में ग्रेट इंडियन पेनिनसुला रेल कंपनी की स्थापना हुई।
ठीक 170 साल पहले...
16 अप्रैल 1853 को सार्वजनिक अवकाश था। लोग बॉम्बे के बोरीबंदर की तरफ बढ़ रहे थे। गवर्नर का निजी बैंड मधुर संगीत बजाकर माहौल को खुशनुमा बना रहा था। दोपहर 3:25 बजे तक 14 डिब्बों वाली गाड़ी में 400 लोग सवार हो चुके थे।
3:30 बजे तालियों की गड़गड़ाहट के बीच 21 तोपों की सलामी दी गई और इस रेलगाड़ी को ब्रिटेन से मंगवाए गए तीन भाप इंजन सुल्तान, सिंधु और साहिब ने खींचना शुरू कर दिया।
ये भारत की पहली रेलगाड़ी थी और इसी के साथ देश में रेल ट्रांसपोर्ट की शुरुआत हुई। इस रेलगाड़ी ने 34 किलोमीटर का सफर सवा घंटे में तय किया और शाम 4.45 बजे ठाणे पहुंची।
भारत में 1856 में भाप के इंजन बनना शुरू हुए। इसके बाद धीरे-धीरे रेल की पटरियां बिछाई गईं पहले नैरोगेज (762 mm) पर रेल चली उसके बाद मीटरगेज (1000 mm) और ब्रॉडगेज (1676 mm) लाइन बिछाई गई
मौजूदा भारतीय रेलवे...
अमेरिका, रूस और चीन के बाद दुनिया का चौथा सबसे लंबा रेलवे नेटवर्क है। 1 लाख 8 हजार किमी का ट्रेक है। ये भारत के रेल नेटवर्क का मैप है। रोजाना करीब 20 हजार ट्रेनों का संचालन करता है, जिसमें ढाई करोड़ से ज्यादा सवारी और 28 लाख टन से ज्यादा माल ढुलाई होती है।
करीब 12 हजार यात्री ट्रेनें रोज जितनी दूरी तय करती हैं उतने में चांद का चार बारचक्कर लगाया जा सकता है। करीब 14 लाख कर्मचारी काम करते हैं। इंडियन रेलवे दुनिया का 7वां सबसे बड़ा एम्प्लॉयर है।
12 हजार से ज्यादा लोकोमोटिव यानी इंजन, 76 हजार से ज्यादा यात्री डिब्बे, करीब 3 लाख मालगाड़ी के डिब्बे हैं।
ट्रेन पटरियां कैसे बदलती हैं जिस तरह गाड़ियों में स्टेयरिंग और बाइक में हैंडल होता है वैसा ट्रेन में कुछ नहीं होता। ऐसे में ट्रेनें अपना ट्रेक इंटरलॉकिंग सिस्टम से बदलती हैं।
दरअसल, ट्रेन का पहिया अंदर तरफ से थोड़ा निकला होता है और वो ट्रैक को पकड़कर चलता है। ये छोटी सी टेक्नीक ट्रेन का ट्रैक चेंज करने में बड़ा काम आती है। जहां ट्रैक चेंज करना होता है, वहां 2 पटरियों को आपस में ऐसे चिपकाया जाता है कि ट्रेन नया ट्रैक पकड़ ले। इसे इंटरलॉकिंग पॉइंट कहा जाता है। स्टेशन में कम्प्यूटर स्क्रीन पर इस पूरे सिस्टम की निगरानी होती है। इसमें स्टेशन लेआउट का पूरा व्यू, ट्रैक पर ट्रेनों का रियल टाइम मूवमेंट, सिग्नल्स और ट्रैक का पॉइंट किस दिशा में हे सब कुछ दिख रहा होता है। रेलवे के ट्रैफिक को कंट्रोल करने के लिए ट्रैक पर सिग्नल होते हैं। इनकी लाइट्स का मतलब भी सड़क की लाइट्स जैसा ही है। हर स्टेशन से पहले एक होम सिग्नल होता है,
यहां उसका मतलब जान लेते हैं….
लाल लाइट यानी ठकने का इशारा पीली लाइट मतलब रफ्तार धीमी करो हटी लाइट यानी मेन लाइन से बिना धीमा किए निकल जाओ होम सिग्नल में एक सफेद लाइट भी होती है, जो प्लेटफॉर्म की तरफ आने का इंडिकेशन देती है।
कितने तरह के रेल इंजन रेल में सफर करते वक्त आपने देखा होगा कि इंजन के आगे कुछ कोड लिखा होता है।
मसलन- WAP5, WDG7, WAG9…
अब इसका मतलब जानते हैं।
W यानी Wide Gauge पर चलने वाले इंजन। लोहे की दो पटरियों के बीच की दूरी को गेज कहते हैं। भारत में आमतौर पर ये दूरी 1676 mm है, जिसे वाइड गेज कहते हैं। WDP4 D यानी Diesel से चलने वाले इंजन। इसी तरह बिजली से चलने वाले इंजन के लिए A लिखा होता है।
P यानी पैसेंजर ढोने वाले इंजन। इसी तरह मालगाड़ी वाले इंजन के लिए G लिखा होता है।
4 यानी चौथी जनरेशन का इंजन। इसी तरह 5,6,7,8,9 इंजन के जनरेशन के नाम हैं। WAPS मान लीजिए अगली बार सफर करते वक्त आपने किसी रेल इंजन में WAP5 लिखा देखा। इसका मतलब हुआ कि ये वाइड गेज पर बिजली से चलने और पैसेंजर ढोने वाला 5वीं जनरेशन का इंजन है। रेल इंजन में आम तौर पर 27 फंक्शन होते हैं, लेकिन उनमें 3 प्रमुख हैं, जिन्हें ट्रेन का ड्राइवर यानी लोकोपायलट कंट्रोल करता है
हर डिब्बे में होता है ट्रेन का ब्रेक कार और बाइक में ब्रेक लगाना पड़ता है, जबकि ट्रेन के पहियों से सटे ब्रेक शू की वजह से ट्रेन में हमेशा ब्रेक लगा ही रहता है। लोको पायलट को ट्रेन चलानी होती है तो वो हवा का प्रेशर देकर इस ब्रेक शू को 5mm पीछे हटाता है। अगर ट्रेन टोकनी होती है तो हवा का प्रेशर रिलीज कर दिया जाता है और ब्रेक शू अपने आप लग जाते हैं। तभी जब ट्रेन रुकने वाली होती है तो आप हवा निकलने की आवाज सुने होंगे।
सभी डिब्बों में एक चेन लगी होती है। किसी आपात स्थिति में यात्री इस चेन को खींचते हैं, तो भी ट्रेन में ब्रेक लग जाता है। चेन पुलिंग करते ही डिब्बे के बाहर एक लाइट जल जाती है और लोकोपायलट तीन छोटे- छाटे हॉर्न बजाता है। जिससे कर्मचारियों को पता लग जाता है। कि कहां से चेन खींची गई है। लोको पायलट चाहे तो चेन पुलिंग के बावजूद एयर प्रेशर देकर गाड़ी आगे बढ़ा सकता है क्योंकि उसके पास एयर प्रेशर के लिए एक फीडर पाइप भी होता है।
ट्रेन पर लिखे चिन्हों के मायने ट्रेन के डिब्बों पर आपने बड़े अक्षरों में एक नंबर लिखा देखा होगा। मसलन – 05731 इस नंबर के पहले दो अक्षर बताते हैं कि ये किस साल बना है। अगर किसी डिब्बे पर 05731 लिखा है तो इसका मतलब ये डिब्बा 2005 में बना है और सामान का डिब्बा है। इसके बाद के तीन अक्षर बताते हैं कि ये किस दर्जे का डिब्बा है।
1 से 200- एसी डिब्बा
200 से 400 – स्लीपर डिब्बा
400 से 600- जनरल डिब्बा
600 से 700- चेयरकार
700 से 800- सामान का डिब्बा
इसी तरह ट्रैक किनारे लिखे W/L का मतलब होता है व्हिसल फा बजाओ, आगे लेवल क्रॉसिंग है।
W/B का मतलब है व्हिसलबजाओ, आगे ब्रिज है। ट्रैक के किनारे T / G या T / P लिखा होता है। ये स्पीड टर्मिनेश का इंडिकेटर है यानी अब लोकोपायलट फुल स्पीड से ट्रेन दौड़ा सकता है।
गाड़ी के आखिरी डिब्बे पट X या LV का निशान
रेलवे के कर्मचारियों के लिए बना होता है। इस निशान से उनको पता लग जाता है कि पूरी गाड़ी जा चुकी है और ये आखिरी डिब्बा है। हर स्टेशन और क्रॉसिंग पर कर्मचारी हरी और लाल झंडी लेकर खड़े रहते हैं। वो हरी झंडी हिलाते हुए पूरी ट्रेन गुजरते देखते हैं। कुछ भी गड़बड़ होने पर लाल झंडी दिखा देते हैं। इससे गाड़ी के पीछे तैनात गार्ड तुरंत लोकोपायलट को सूचना देकर गाड़ी रुकवा देता है।
आने वाले दिनों में
इंडियन रेलवे हाई-स्पीड रेल भारत सरकार कई हाई-स्पीड रेल प्रोजेक्ट्स पर काम शुरू कर चुकी है। मसलन मुंबई – अहमदाबाद हाई स्पीड रेल कॉरिडोर, जिसे बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट भी कहा जाता है। अगर ये सफल होता है तो देश के दूसरे हिस्सों में भी बुलेट ट्रेन चलाई जाएगी। इनकी स्पीड 320 किमी / घंटा तक होती है। यानी 2 घंटे में दिल्ली से भोपाल का सफर हो जाएगा।
मालगाड़ी कॉरिडोर्स
इंडियन रेलवे मालगाड़ियों के लिए अलग कॉरिडोर बना रहा है। इससे माल ढोने की क्षमता तो बढ़ेगी ही, साथ ही रेल नेटवर्क पर बोझ भी घटेगा। ऐसे कॉरिडोरबनने से मालगाड़ियां अलग ट्रैक पर हाई-स्पीड से चलेंगीं।
हाइपरलूप ट्रेन
यह हाई स्पीड ट्रेन चुंबकीय तकनीक से लैस ट्रैक पर चलती है। इसमें घर्षण बिल्कुल नहीं होता, जिसके कारण इसकी रफ्तार 700 से 800 किमी प्रति घंटे तक पहुंच जाती है। कई विदेशी कंपनियां भारत में अल्ट्रा हाई स्पीड के लिए हाइपरलूप तकनीक लाने में रुचि दिखा रही हैं।
टेक्नोलॉजी और डिजिटाइजेशन
टिकटिंग, पैसेंजर सर्विस, ट्रेन ऑपरेशन के लिए इंडियन रेलवे तेजी से टेक्नोलॉजी एडॉप्ट कर रहा है। आने वाले दिनों में ट्रेन संचालन को और आसान बनाने, यात्रियों की सुरक्षा और सुविधा के लिहाज से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, डेटा एनालिटिक्स और इंटरनेट ऑफ थिंग्स का इस्तेमाल हो सकता है।
पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप
भारत सरकार रेल सेक्टर में प्राइवेट निवेश को बढ़ावा दे रही है। आने वाले दिनों में इंडियन रेलवे पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप की तरफ बढ़ सकता है। यानी रेलवे स्टेशन बनाने से लेकर नई ट्रेन चलाने तक, प्राइवेट कंपनियां भी शामिल हो सकती हैं।1